वन नेशन वन इलेक्शन क्या है? one nation one election in hindi , आखिर क्या है ek desh ek chunav ,एक देश एक चुनाव कैसे काम करेगा?, वन नेशन वन इलेक्शन से क्या फायदा होगा ? और वन नेशन वन इलेक्शन से क्या नुक्सान होगा ? इन सभी सवालों के जवाब जानेंगे आज के इस लेख में।
बदलती दुनिया के साथ -साथ यह देश भी बदला है। क्योंकि भारत को आज कौन नहीं जानता है। पूरे विश्व में भारत ने अपनी छाप छोड़ी है। सभी बड़े बड़े काम भारत में होते आए है। चाहे चांद पर तिरंगा लहराना हो या G20 की मीटिंग का शुभारंभ करना हो। और आज भारत सरकार चुनाव व्यवस्था को बदलकर इसे और बेहतर करने की ओर कदम बढ़ा रही है । आज हम आपको बताएंगे one nation one election के बारे में कि इसके लागू हो जाने पर देश में क्या क्या बदलाव देखने को मिलेंगे।
आप सभी जानते है, विधान सभा और लोकसभा और भी अन्य चुनाव अलग अलग होते है। जिसमे सरकार का बहुत ज्यादा समय बर्बाद तो होता ही है , साथ ही बहुत खर्चा भी होता है, तो सरकार ने इस समस्या का समाधान भी निकाल लिया है। संसद का एक विशेष सत्र 18 सितंबर 2023 को बुलाया जाएगा, जो कि 5 दिन का होगा, तो इसकी वजह से यह मुद्दा (one nation one election) भी सुर्खियों में आ गया है।
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वन नेशन वन इलेक्शन’ क्या है?
one nation one election : सभी प्रकार के चुनावों को अलग अलग दिन ना कराकर एक ही दिन में एक साथ कराया जाय। ऐसा करने से अलग अलग चुनावों में होने वाले खर्च बचेंगे। यह अनुमान है, कि अकेले 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में लगभग 60000 हज़ार करोड़ खर्च हो गए थे। विधिआयोग का कहना है , जो चुनावों के समय आदर्श आचार संहिता लगने से सरकारी प्रोजेक्ट और कार्य रुक जाते है, इसीलिए one nation one election, से ये कार्य बिना रुके चल सकेंगे।साथ ही एक दिन एक साथ चुनाव कराने से वोटर भी बढ़ेंगे। इसके लिए सरकार को संविधान में कई संशोधन’ भी करने पड़ेंगे।
वन नेशन वन इलेक्शन क्यों लागू किया जा रहा है?
इसके रास्ते की सबसे बड़ी चुनौती है, लोकसभा और विधानसभा के कार्यकाल को एक साल तक बढ़ाना। जिसके लिए संविधान में कई संशोधन’ करने की आवश्यकता है। वन नेशन वन इलेक्शन (one nation one election ) को लागू करना इतना मुश्किल है , कि बीजेपी संसद द्वारा बिल लाने की वज़ह से सभी विपक्षी दल बहुत ज्यादा विरोध करेंगे। इसके द्वारा BJP लोकसभा चुनाव में जनता के समक्ष इसका विचार रख सकती है। यह कहेगी विपक्षी दल हमें देश का पैसा बचाने से रोक रहे है। इसे ऐसे समझें, आर्टिकल 370 के खत्म करने से कश्मीर में बेशक कुछ ना बदला हो पर पीएम मोदी ने देश में अपना मान बढ़ाया है। देश में सबसे ज्यादा आबादी मीडियम वर्ग की होने की वज़ह से जब उनके बीच में खर्चे को बचाने की बात रखी जाएगी तो सरकार की प्राथमिकता उसके सामने बढ़ जाएगी। क्योंकि सरकार ने बीते दिनों बड़े बड़े काम करने की वज़ह से जनता पर अपना अटूट विश्वास बना लिया है।
वन नेशन वन इलेक्शन से क्या फायदा होगा ?
प्रत्येक वर्ष 5-6 राज्यो में चुनाव होने की वज़ह से इसके समर्थक विकास कार्यों में परेशानी को लेकर इसका समर्थन कर रहे है। जैसे हम ओडिशा को देखते है, ओडिशा में चारो विधानसभा और लोकसभा चुनाव 2004 के बाद एक साथ हुए, जिसमें नतीजे एक से नहीं रहे, वहां आचार संहिता बहुत कम देर तक लागू होने की वज़ह से सरकारी कामकाज में दूसरे राज्यों से कम दिक्कतें होती है।अगर पूरे देश की विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव एक साथ होते हैं, तो इससे चुनाव पर होने वाले खर्च में कमी आयेगी। 2019 में जो लोकसभा चुनाव हुए थे, उससे पहले 2018 में एक रिपोर्ट लॉ कमीशन की आई थी, उसमे बताया गया था, कि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ होने की वज़ह से 4500 करोड़ रुपए का खर्चा होगा। क्योंकि चुनाव में ज्यादा EVM मशीन लगानी पड़ेगी। इसमें यह भी बताया गया अगर यह कार्यक्रम आगे भी चलता है,तो 2024 तक सरकार का 2471 करोड़ रुपए का खर्चा होता।
वन नेशन वन इलेक्शन से क्या नुक्सान होगा ?
चल रहे विचारो में यह सामने आया है,अगर ऐसे हालत बन जाते हैं , तो चुनाव फिर अलग अलग होने शुरू हो जाएंगे।
“क्योंकि इससे पहले लोकसभा अपने 5 साल के कार्यकाल से पहले ही 6 बार भंग कर दी गई है।”
“एक बार किन्हीं कारणवश लोकसभा का कार्यकाल 10 महीने के लिए बढ़ा दिया गया था।”
वन नेशन वन इलेक्शन की यह भी बड़ी समस्या है कि अगर ये दोनों स्थितियां बन जाएंगी तो फिर से अलग अलग चुनाव करने की मांग बढ़जाएगी और वैसे ही पहले जैसा ही होगा।
5 साल में एक बार चुनाव होने की वज़ह से सरकार के संबंध जनता से कम हो जाएंगे और सरकार जनता की समस्याओं पर कम ध्यान देगी। क्योंकि अब तो लोकसभा चुनाव जीतने वाली पार्टीयो में यह डर बना रहता है, कि अगर अच्छे तरीके से नहीं चलेंगे,तो विधानसभा में परेशानियां सामने आएंगी।
एक साथ चुनाव होने की वज़ह से वोटर के फैसले पर असर पड़ सकता है ,क्योंकि उच्च लेवल पर देश और राज्य के मुद्दे अलग अलग होते है।
देश में वन नेशन वन इलेक्शन लागू करने की प्रक्रिया क्या होगी?
विधि आयोग के अनुसार वन नेशन वन इलेक्शन के प्रस्ताव से संविधान के अनुच्छेद 328 पर भी असर पड़ेगा। जिसके लिए अधिक से अधिक राज्यो की अनुमति लेनी पड़ सकती है।संविधान के अनुच्छेद 368(2) के अनुसार ऐसे संशोधन के लिए ज्यादा से ज्यादा 50% राज्यों की अनुमति आवश्यक है।
परन्तु ‘एक देश, एक चुनाव’ के अधीन हर राज्य की विधानसभा के अधिकार और कार्यक्षेत्र पर असर पड़ सकता है। इसलिए इस मुद्दे में सभी राज्यों की विधानसभाए अपनी अपनी तरफ़ से अनुमति देती है। क्योंकि इनकी अनुमति आवश्यक है।
वन नेशन वन इलेक्शन लागू करने के लिए क्या क्या किया है?
2014 में मोदी की सरकार के आने के कुछ समय बाद एक देश और एक चुनाव पर बहस शुरू हो गई थी। वन नेशन-वन इलेक्शन की एक रिपोर्ट दिसंबर 2015 में लॉ कमीशन ने पेश की थी। इसमें बताई गया अगर लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए जाने की वज़ह से करोड़ों रुपए बचाए जा सकते है। पीएम मोदी ने इस मुद्दे पर बात करने के लिए जून 2019 में पहली बार बैठक बुलाई थी। वन नेशन वन इलेक्शन को पीएम मोदी ने 2020 में हुए एक सम्मेलन में भारत की जरूरत बताया। इस पर सरकार ने अब 1 सितंबर 2023 को इस विषय में एक कमेटी बनाने का फैसला किया। इस कमेटी के अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को बनाया जाएगा। यह कमेटी इस मामले पर सभी हितधारकों (यह एक ऐसी पार्टी है, जो व्यवसाय पर प्रभाव डाल सकती है) की सलाह लेकर एक रिपोर्ट तैयार करेगी।
FAQs:
वन नेशन वन इलेक्शन की शुरुआत कब हुई ?
वन नेशन वन इलेक्शन के बारे में पहली बार 1983 में चुनाव आयोग ने सुझाव दिया था। लेकिन अब इसे पूरी तरह से लागू करने की योजना बनाई जा रही है।
वन नेशन वन इलेक्शन से क्या फायदा होगा ?
जनता और सरकार दोनों का पैसा बचेगा, प्रशासनिक व्यवस्था और सुरक्षा बलों का बोझ कम होगा , सरकारी नीतियां समय पर कार्य कर सकेंगी और प्रशासन विकास कार्यों में ज्यादा समय दे पाएगा ।
वन नेशन वन इलेक्शन से क्या नुक्सान होगा ?
शुरुआत में लोकसभा और विधानसभा के नियमों और शर्तों को सिंक्रोनाइज ( समकालीन) करने में काफ़ी मुश्किलों से गुजरना पड़ेगा और संविधान में भी काफ़ी बदलाव की आवश्यकता होगी ।
किन देशों में एक साथ चुनाव होते हैं ?
ब्राजील, कोलंबिया और फिलीपींस में राष्ट्रपति पद के लिए और विधायक स्तर पर चुनाव एक साथ होते हैं। स्वीडन और दक्षिण अफ्रीका में आम चुनाव और प्रांतीय चुनाव दोनों चुनाव एक साथ होते हैं।
चुनाव का खर्चा कौन उठाता है ?
चुनाव का पूरा खर्चा , अलग अलग चुनावों के अनुसार भारत सरकार और राज्य सरकार द्वारा उठाया जाता है।
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