Israel Palestine conflict : इजरायल फिलीस्तीन के बीच विवाद की वज़ह क्या है , हमास क्या है ?, गाज़ा पट्टी क्या है ?, इजरायल देश कब बना? , क्या फिलीस्तीन मुस्लिम देश है ?, क्या हमास क्या कोई देश है? Israel – Palestine war , Hamas kya hai, Gaza patti
अभी 7 अक्टूबर की शाम को यह खबर पूरी दुनिया में आग की तरह फैल गई थी कि हमास ने इज़रायल पर 5000 मिसाइल लॉन्च कर दी। तो ज़ाहिर सी बात है कि आपको भी टीवी, सोशल मीडिया या किसी के माध्यम से यह खबर जरूर मिली होगी। जिस तरह दुनिया के बड़े– बड़े देशों ने इस हमले पर गंभीरता दिखाई, इससे पता चलता है कि यह कोई साधारण घटना नहीं है। तो क्या है इज़रायल (Israel) और पलिस्तीन (Palestine) का विवाद और क्यों इनके बीच में हमेशा युद्ध के बादल छाए रहते हैं? इसे जानने के लिए आप हमारे इस लेख को आगे पढ़ें।
हमास क्या है?
Hamas kya hai : हमास एक फिलिस्तीन का उग्रवादी संगठन है, जिसके नियंत्रण मे ग़ाज़ा पट्टी के कुछ इलाके हैं ,और वह इन इलाकों को इस्लामिक स्टेट बनाना चाहता है। इसकी स्थापना सन 1981 में फ़िलिस्तीनी राजनेता अहमद यासीन के द्वारा की गई थी। हमास साल 2017 से ग़ाज़ा पट्टी पर शासन कर रहा है और तब से लेकर अब तक हमास और इजराइल के बीच कई संघर्ष हुए हैं। इस युद्ध के जवाब में इजराइल ने भी कई हमले किए हैं।
हमास को इस्राइल , यूरोपीय संघ ,संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन और कई अन्य देश इसे एक आतंकवादी संगठन मानते हैं । वहीं दूसरी तरफ हमास को सीरिया , ईरान, और कई इस्लामिक देश इसका समर्थन करते हैं।
इजरायल और फिलिस्तीन की लड़ाई की 5 बड़ी वजहें
आज जिस लड़ाई की चर्चा पूरी दुनिया में हो रही है , जिसमें बहुत बड़ी तबाही हुई , ये लड़ाई बहुत पुरानी है। इसके पीछे कई ऐतिहासिक ,राजनीतिक और धार्मिक वज़ह भी है। लेकिन ये 5 वजहें सबसे बड़ी वज़ह मानी जाती हैं:
1.इजरायल और फिलिस्तीन विवाद की सबसे बड़ी वजह है यरूसलेम (Jerusalem) :
यरूसलेम दोनो इज़राइलियो और पलिस्तीनों की धार्मिक जगह है। और वैसे तो युद्ध में जीत के बाद इज़राइल ने
यरूसलेम पर कब्ज़ा कर लिया था और उस पर आज भी शासन करता है और अपनी राजधानी मानता
है, लेकिन पलिस्तीन के लोगों के लिए यरूसलेम ही उनकी असली राजधानी है।
2.यहूदियों लिए एक अलग देश :
1920 से 1948 तक बालफोर समझौते के तहत दुनिया में बिखरे यहूदियों को पलिस्तीन में बसाया गया और उन्हें जमीनें बेची गई, ताकि वे लोग भी अपना एक अलग देश बना सके। इसके लिए पलिस्तीनियों को उस क्षेत्र से हटाया गया, जिन्हे उनके अरब देशों के हमदर्द राजनेताओं ने भी अपने देश में जगह नहीं दी। इसलिए 1948 में जब इज़राइल देश बना, उसपर आज तक आक्रमण किए जाते हैं।
3.जमीन पर कब्ज़ा :
देखिए 1948 से जब भी इज़राइल और उसके विरोधी देश लड़े हैं, हमेशा इज़राइल ही जीता है और जीतने के साथ–साथ आस–पास के क्षेत्र पर अपना नियंत्रण में कर लिया। अब जहां तक इज़राइल ने अपना देश का फैलाव किया, वहां के आम लोगो को भी उस जगह से जाना पड़ा। इसी कारण आस–पास के देशो की आम जनता में भी इज़राइल के प्रति आक्रोश की भावना रहती है।
4.हमास का बनना :
Hamas : हमास के बनने से इजरायल और फिलिस्तीन के बीच विवाद और भी ज्यादा बढ़ गया है। ये एक इस्लामिक संगठन है जिसे ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, जापान, यू. के. ,जैसे बड़े देशों द्वारा आतंकी संगठन माना गया है। 1987 में हमास बना और इसका मुख्य उद्देश्य इजरायल को तबाह करना है। हमास पलिस्तीन अधिकृत गाजा पट्टी और वैस्ट बैंक पर नियंत्रण करता है। 1987 से ही हमास इज़राइल पर हमले करता रहा है जिसके जवाब में इजरायल गाजा पट्टी और वैस्ट बैंक पर मिसाइलें दागता रहा है। इन दोनो के बीच में युद्ध की स्थिति हमेशा बनी रहती है।
5.ईरान और इजरायल की दुश्मनी :
अगर आज की दुनिया में इज़राइल का सबसे बड़ा दुश्मन देश अगर कोई है तो वो है ईरान। 1979 कि इस्लामिक क्रांति के बाद ईरान ने इजरायलके प्रति काफी कठोर रवैया
अपना लिया और उससे अपने सारे संबंध तोड़ दिए। जब से इज़राइल के परमाणु बम बनाने के बाद, ईरान ने यह बयान दिया है कि वह भी अपने परमाणु बम बनाएगा, तब से इन दोनो देशो के बीच युद्ध जैसे स्थिति बनी रहती है। ईरान संदिग्ध रूप से आतंकी संगठन जैसे हिजबुल्ला, पलिस्तिनी इस्लामिक जिहाद और हमास को पैसे और हथियार देता है। 1992 में अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनो एयर्स में मौजूद
इज़राइल के दूतावास पर हमले और 1994 में ए.एम.आई.ए पर हमले में भी ईरान का हाथ माना जाता
है।
गाज़ा पट्टी क्या है ?
Gaza patti kya hai : गाज़ा पट्टी फिलिस्तीन के कब्जे वाली दूसरी और सबसे छोटी जगह है जो की भूमध्य सागर के पूर्वी तट पर मौजूद है । गाज़ा पट्टी के पूर्व एवं उत्तर में इजरायल है और दक्षिण पश्चिम में मिस्र है। गाज़ा पट्टी पर हमास का कब्ज़ा है जिसे वो इस्लामिक स्टेट बनाना चाहता है। इसी जगह से हमास इजरायल पर हजारों मिसाइल दागता है। इस जगह की आबादी लगभग 20 लाख मानी जाती है।
आईरन डोम (Iron Dome) क्या है ?
आईरन डोम (iron Dome) इज़राइल का सुरक्षा सिस्टम है जो कि इज़राइल की तरफ आती हुई ज्यादातर
मिसाइलों को जमीन से हवा में ही खत्म कर देता है। इसे 2011 में इसे राफेल एडवांस डिफेंस सिस्टम और इज़राइल एयरोस्पेस इंडस्ट्री ने बनाया था और इसमें अमेरिका ने भी मदद की थी। आईरन डोम को बनाने में लगभग 150 करोड़ डॉलर लग गए थे।
आज भी आईरन डोम इज़राइल का सबसे सुरक्षित कवच बनकर खड़ा हुआ है जो उसे आज तक हवाई हमलों से बचाया आता है।
इज़राइल और पलिस्तीन का इतिहास
देखिए इन देशों के बीच के विवाद को समझने के लिए सबसे पहले हमें पहले यह समझना होगा कि इन देशों का इतिहास क्या है और किन वजहों से आज तक यह दोनो देश युद्ध की कगार पर खड़े रहते हैं।
इज़राइल और पलिस्टीन का धार्मिक इतिहास : वैसे तो यदि हम इज़राइल और पलिस्तीन का इतिहास धर्म एंड धार्मिक पुस्तकों के नज़रिए से देखें तो जिस जगह पर इज़रायल और पलिस्तीन हैं, वहां पर यहूदियों यानी jewish लोग रहा करते थे और नीचे के क्षेत्र में जिसे हम अरब या मिडिल ईस्ट कहते है, वहां मुसलमानों का वास था। धार्मिक पुस्तकों के मुताबिक यहूदी, मुस्लिम और ईसाई समुदाय के लोगो की शुरुआत एक ही व्यक्ति से हुई है जिसे अब्राहम (Abraham) कहा जाता है और इसी कारण इन तीनो धर्मो को अब्राहमिक धर्म (Abrahamic Religion) कहा जाता है।अब्राहम के मुख्यताः दो बेटे थे– इसाक (Issac) और इस्माइल (Ismael)। इसाक का बेटा हुआ याकूब (Jacob), जिसके नाम से इज़रायल शब्द आया। याकूब की वंशावली में दाउद (David) आए और उनके बाद ईशु मसीह (Jesus Christ) का जन्म हुआ और ईसाई धर्म की शुरुआत हुई। जबकि इस्माइल की वंशावली में पैगम्बर मोहम्मद (Prophet Mohammad) के जन्म के साथ इस्लाम धर्म का उदय हुआ। याकूब और उसके वंश के लोग प्राचीन इज़रायल में बसे रहे जबकि इस्माइल और इसके वंश के लोगो ने अरब में अपना बसेरा बनाया।
अब यह बात तो धर्म और धार्मिक पुस्तकों के नज़रिए से रही, लेकिन सन् 1516–1517 के बीच एक ऐसी घटना हुई जिसने आज के इज़राइल–पलिस्तीन युद्ध की नीव रखी।
ऑटोमन साम्राज्य का आक्रमण (Invasion of Ottoman Empire)
ऑटोमन साम्राज्य 13वी शताब्दी के अंत में तुर्की से आया एक विशाल साम्राज्य था जिसने 1516–1517 में प्राचीन इज़राइल पर आक्रमण किया और उस क्षेत्र पर 400 साल से भी ज्यादा समय तक राज किया। उस समय ऑटोमन साम्राज्य ने यह नीति बनाई कि इज़राइल के बुद्धिमान, कलाकर, उच्च पदों के लोग और पूंजीपतियों को इज़रायल से बाहर निकाल कर यहूदियों को दुनिया में फैला दिया। इसकी वजह यह थी कि इज़रायल में ऑटोमन साम्राज्य के खिलाफ खड़ा होने वाला कोई भी काबिल और समर्थ व्यक्ति नहीं हो सके। ऑटोमन साम्राज्य के इज़रायल पर राज के दौरान अरब मूल के मुसलमानों ने इज़राइल में बसना शुरू कर दिया और उस क्षेत्र में यहूदी और मुसलमान एक साथ रहे और इस क्षेत्र को पलिस्तीन नाम दिया गया।
इज़राइल और पलिस्तीन का विवाद क्या है ?
वैसे तो यहूदी पूरी दुनिया में फ़ैल गए लेकिन उनकी काबीलियत की वजह से उन्हें ज्यादातर देश के मूल निवासियों ने ईर्ष्या की भावना से देखा और उनके साथ ऐसे घुसपैठियों के जैसा व्यवहार किया जिन्होंने उनका हक छीना हो। इसी का सबसे बड़ा उदाहरण हिटलर का 60 लाख यहूदियों का नरसंहार करना था। हिटलर और उसकी नाज़ी विचारधारा यह थी कि यहूदियों की नस्ल अशुद्ध है और ताकि यह अशुद्धि दूसरे वर्ग के लोगों में ना आ सके इसलिए यहूदियों को मारना जरूरी है।
प्रथम विश्व युद्ध ( 28 जुलाई, 1914–11 नवंबर, 1918) के दौरान ऑटोमन साम्राज्य जो कि जर्मनी के पक्ष में लड़ा था, हार गया और पलिस्तीन क्षेत्र में उसकी ताकत कम और ब्रिटेन की शक्ति बढ़ती गई। लेकिन 1916 में हुए साइक्स–पीकॉट के गुप्त समझौते के मुताबिक ऑटोमन साम्राज्य के जाने के बाद उस क्षेत्र में ना ही अंग्रेजो का राज्य होगा और न ही फ्रैंच साम्राज्य का, बल्कि उसे अंतराष्ट्रीय क्षेत्र घोषित किया जाएगा। लेकिन पलिस्तीन का क्षेत्र अंग्रेजो के लिए बहुत लाभकारी था जिससे वे मिस्र (Egypt) और सुएज नहर (Suez Canal) पर अपना प्रभाव बनाए रखा सके, जो कि दुनिया के आयात और निर्यात का बहुत जरूरी माध्यम है। अब ऐसे क्षेत्र को अंग्रेज सीधे तौर पर अपने प्रभाव से नहीं जाने दे सकते थे इसलिए 1917 में ब्रिटेन के विदेशी सचिव, आर्थर जेम्स बालफोर ने बैरन रोथशिल्ड को एक पत्र लिखा। बैरन ब्रिटेन में रहने वाले धनी यहूदी और राजनेता थे। उस पत्र में आर्थर ने यह लिखा कि अंग्रज़ी सरकार पलिस्तीन में यहूदियों को बसाने के लिए सहायता करेगी और इसी समझौते को बालफोर समझौता कहा गया। और चूंकि 1897 में थियोडोर हर्जल (यहूदी राजनेता) ने के दिया था कि यहूदी जब तक अपना अलग देश नही बना लेते तब तक दुनिया के उनकी जनसंख्या जी नही पाएगी। यहूदियों को पलिस्तीन में बसाया जाने लगा और उन्हें रहने के लिए जमीन बेची गई। इसी कारण बालफोर समझौते ने दुनिया में फैले यहूदियों के लिए एक नई उम्मीद पैदा कर दी कि वे अपनी पहचान अलग बना सकते हैं।
लेकिन यहूदियों के दिलो में जगी खुशी की रौशनी बहुत जल्द बुझने वाली थी क्योंकि 1915–1916 में हुए हुसैन–मैकमोहन समझौते के मुताबिक पलिस्तीन को महान अरब साम्राज्य में जोड़ा जाएगा। हैरानी की बात तो यह है कि यह समझौता भी अंग्रेजों ने ही किया था ताकि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अरब साम्राज्य और उनकी सरकार ऑटोमन साम्राज्य के खिलाफ विद्रोह कर दें और उन्हें हराकर, ब्रिटेन का दबदबा उस क्षेत्र में बढ़ सके। अब क्योंकि बालफोर समझौता यहूदियों को पलिस्तीन में बसाने के लिए था और इसके विपरीत हुसैन–मैकमोहन समझौता के तहत पलिस्तीन को अरब राष्ट्र में शामिल किया जाएगा इसलिए यहूदियों और अरब के मुसलमानों के बीच में तनाव शुरू होने लगा और पलिस्तीन में अशांति का कारण बन गया।
इजरायल देश कब और कैसे बना ?
अब चूंकि अंग्रेजों के लालच की वजह से इतना विवाद हो गया इसलिए 1920 से 1948 तक पलिस्तीन में एक जगह को छोड़कर अंग्रेजो का ही शासन रहा और वह जगह थी जेरूसलम। 1945 में बने संयुक्त राष्ट्र संघ ने यह फैसला लिया जिसके तहत 1948 में पलिस्तीन का एक हिस्सा यहूदियों को भी दिया गया जहां वे अपना एक अलग देश बसा सके और यहूदियों ने अपने देश का नाम इज़राइल रखा। लेकिन जेरूसलम जो कि मुस्लिम, ईसाई और यहूदी तीनों का धार्मिक स्थल है और विवाद का मुख्य केंद्र है, उसपर संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपना ही प्रभाव रखा।
इजरायल का पहला युद्ध
इज़राइल का बनना न तो पलिस्तीनियो को पसंद आया और न ही अरबियो को। इसलिए 14 मई 1948 में देश बनते ही अगले दिन 15 मई को इज़रायल युद्ध की कगार पर खड़ा हो गया। पलिस्तीन के क्षेत्र में मिस्र, जॉर्डन, सीरिया,इराक और सऊदी अरब की सेना घुस गई और इज़राइल पर आक्रमण कर दिया। 10 दिनों के बाद इस युद्ध का परिणाम आया और इज़राइल विजयी रहा। युद्ध के परिणाम स्वरूप इज़राइल ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा दिया गया अरब राज्य को बनाने के लिए दिए गए क्षेत्र का 60% हिस्सा अपने कब्जे में ले लिया और साथ ही में जेरूसलम का पश्चिमी भाग भी जीत गया। लेकिन जॉर्डन ने भी पूर्वी जेरूसलम पर अपना कब्जा कर लिया जिसे बाद में पश्चिमी बैंक (western bank) कहा गया। मिस्र की सेना ने भी गाजा पट्टी पर भी अपना अधिकार बना लिया। लेकिन अन्ततः इज़राइल ने अपना क्षेत्रफल पहले से भी ज्यादा बढ़ा लिया।
इज़राइल और 6 देशों का युद्ध 1967 में इज़राइल के खूफिया संगठन, मोसाद की रिपोर्ट से पता चला कि अरब और मुस्लिम देश आपस में सेना इकट्ठा करके इज़राइल पर हमले की योजना बना रहे हैं। इसलिए इसे पहले कि इज़राइल पर हमला हो, 5 जून, 1967 में इज़राइल ने ही युद्ध की शुरुआत कर दी। 5 जून को इज़रायल की वायुसेना ने अचानक से मिस्र के सैनिक हवाई अड्डों पर बम गिराने शुरू कर दिए और लड़ाकू विमानों को तबाह करके हवाई युद्ध में बढ़त बना ली। फिर इज़राइल की सेना ने मिस्र के सिराई प्रायद्वीप और उनके कब्जे में मौजूद गाजा पट्टी पर भी हमला कर दिया। दूसरे अरब देशों ने भी मिस्र का साथ दिया। जॉर्डन ने वैसे तो बहुत ज्यादा आक्रामकता नही दिखाई जिस प्रकार पिछले युद्ध में दिखाई थी, लेकिन इज़राइल की लगातार आगे बढ़ती सेना को रोकने की पूरी कोशिश की। सीरिया ने भी उत्तर दिशा से इज़राइल पर बम बरसाने शुरू कर दिए। एक तरफ इज़राइल और दूसरी तरफ 6 देश, सुनकर ऐसा लगता है कि अबकी बार इज़राइल जरूर हार गया होगा लेकिन जो कुछ हुआ वह चमत्कार से कम नहीं था, इज़राइल ने 6 दिनों में ही 6 देशों को हरा दिया। परिणाम यह रहा कि इज़राइल ने अब मिस्र से उसकी गाजा पट्टी और सिराई प्रायद्वीप, जॉर्डन से उसका वैस्ट बैंक और सीरिया से उसका गोलान हाइट्स छीन लिया था।
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FAQs :
हमास क्या कोई देश है ?
नहीं ,हमास कोई देश नहीं बल्कि फिलिस्तीन का एक संगठन है जिसे इस्राइल , यूरोपीय संघ ,संयुक्त राज्य अमेरिका सहित कई देशों द्वारा एक आतंकी संघठन माना जाता है।
क्या इज़राइल मुस्लिम देश है ?
इज़राइल मुस्लिम देश नहीं है बल्कि एक यहूदी बहुमत देश है।
गाज़ा पट्टी क्या है ?
गाज़ा पट्टी फिलिस्तीन के कब्जे वाला इलाका है।
हिजबुल्लाह कौन है ?
हिजबुल्लाह लेबनान का एक आतंकी संगठन है जो इजरायल के खिलाफ़ हमले करता है।