उल्का पिंड कब गिरेगा ? | Ulka pind kya hai

उल्का पिंड कब गिरेगा ? अकसर हमारे मन ये सवाल रहता है । आज हम जानेंगे की आखिर उल्कापिंड कैसा दिखता है ?,
उल्कापिंड कैसे बनता है, उल्का पिंड कब गिरेगा ? अभी तक उल्का पिंड कहाँ गिरा है? और साथ ही हम जानेंगे की उल्का और उल्का पिंड में क्या अंतर है ?

उल्का पिंड

अभी कुछ दिनों पहले लोगो ने एक अद्भुत खगोलीय घटना(Astronomical Event) को देखा। इसे पर्सीड मीतियोर वर्षा (Parseid meteor shower) कहा गया और भारत में यह घटना 13 अगस्त, 2023 के रात के 8:30 बजे से 14 अगस्त, 2023 की सुबह 5:30 बजे तक देखने को मिली। यह घटना बहुत चर्चा में रही और इससे सामान्य लोगों में उल्का पिंडो (Meteorites) और अंतरिक्ष के रहस्यों को जानने की उत्सुकता बढ़ी। आज हम आपको अंतरिक्ष में तैर रहे इन उल्काओं और उल्का पिंडो के बारे में बताएंगे।

उल्का पिंड क्या होते हैं ?

जब अंतरिक्ष से विशालकाय चट्टानें पृथ्वी की सतह पर आ गिरती हैं तो उन चट्टानों को उल्का पिंड यानी Meteorites का नाम दिया जाता है। ये क्षुद्रग्रहों (Asteroids) के छोटे हिस्से होते हैं जो उनसे टूटकर पृथ्वी या किसी दूसरे ग्रहों या उपग्रहों पर आ गिरते हैं। अंतरिक्ष में तो ये कुछ मीटर जितने बड़े होते हैं लेकिन धरती पर आते–आते इनका आकार आम तौर पर रेत के दाने से लेकर 1 मीटर से भी काम रह जाता है। यह आंकड़ा भी केवल 5% उल्का पिंडो का है क्योंकि 95% उल्का पिंड धरती की सतह पर पहुंचे से पहले वायुमंडल में जलकर राख हो जाते हैं।

अमेरिका के न्यू ऑरलेंड  में मौजूद टूलेन विश्वविद्यालय ( Tulane University) के एक जाने माने पर्यावरण विज्ञान के प्रोफेसर स्टीफन नेल्सन के हिसाब से एक इंसान के उल्का पिंड से मरने की संभावना लगभग 250000 में 1 होती है।

उल्का और उल्का पिंड में क्या अंतर होता है ?

अंतरिक्ष में बहुत बड़ी–बड़ी चट्टानें मौजूद होती हैं जिन्हे क्षुद्रग्रह (Asteroids) कहा जाता है। ये क्षुद्रग्रह कई किलोमीटर तक बड़े होते है। ये अंतिक्ष में तैरते रहते हैं और किसी ग्रह या उपग्रह के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के अंदर आकार उनकी अंदर खिंचे चले जाते हैं।

जब किसी क्षुद्रग्रह (Asteroid) का एक छोटा सा टुकड़ा अलग हो जाता है तो वह भी अंतरिक्ष में एस्टेरॉयड(उल्का पिंड ) की ही तरह तैरते रहते हैं। बस इनका आकार उनसे बहुत ज्यादा छोटा होता है, लगभग कुछ मीटर बड़ा। जब यहीं चट्टान के टुकड़े पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश कर जाते हैं, तो इन्हे उल्का (Meteor) कहा जाता है। लेकिन वायुमंडल में मौजूद ओजोन (Ozone) और अन्य गैसों से घर्षण (Friction) करने के कारण लगभग 95% उल्का तो धरती की सतह पर पहुंचने से पहले ही अनगिनत टुकड़ों में बट जाते हैं और शेष 5% ही धरती से टकरा जाते हैं। यही 5% उल्का ही उल्का पिंड यानी Meteorites कहलाते हैं।

उल्का पिंड कहां पाए जाते हैं ?

हमारे सौर मंडल में मंगल (Mars) और बृहस्पति (Jupiter) ग्रहों के ऑर्बिट के बीच में एक शुद्रग्रहो की श्रंखला मौजूद होती है, जिसे Asteroid Belt या Kepler belt भी कहा जाता है। इसी एस्टेरॉयड बेल्ट में मौजूद एस्टेरॉयड से ही उल्का अलग होकर,  पृथ्वी की सतह पर उल्का पिंड बनकर गिरते हैं। इसी Asteroid Belt में सौर मंडल का सबसे बड़ा एस्टेरॉयड, सीरिस (Ceres) पाया जाता है जिसका आकार लगभग 476 किलोमीटर और वजन लगभग 9.393*10^20 किलो ग्राम है। अगर आपको यह छोटा लगा रहा है तो आपकी जानकारी के लिए सीरीस का आकार हमारे चाँद का 1/4 है और वजन 10 गुना से भी ज्यादा है। पूरी एस्टेरॉयड बेल्ट का 1/3 भार सीरीस के अंदर ही समाया हुआ है।

उल्का पिंड कब गिरेगा ?

पिछली बार तो साल 2023 में अगस्त के महीने में हमें पर्सीड मीटियोर वर्षा (Parseid meteor shower) देखने को मिली। भारत में यह अद्भुत खगोलीय घटना 13 से 14 अगस्त तक देखने को मिली। इसी साल यह घटना अक्टूबर और दिसंबर  के महिनों में दोबारा देखने को मिलेंगी।

ड्रैकोनिड मीटीयोर वर्षा (Draconid meteor shower) : 2023 के अक्टूबर महीने में ये खगोलीय घटना देखने को मिलेगी। वैसे तो इसे 6 अक्टूबर से 10 अक्टूबर तक देखा जा सकता है परंतु 8 अक्टूबर की शाम से लेकर 9 अक्टूबर की सुबह तक इसे देखना और भी ज्यादा आसान हो जायेगा।

ओरियोनिड मीटियोर वर्षा (Orionid meteor shower) :  ये उलकाओं की वर्षा भी अक्टूबर के महीने में ही देखने को मिलेगी। इसे भारत में 21 अक्टूबर, 2023 रात  के 10:33 बजे से 22 अक्टूबर, 2023 रात के 12:30 बजे के बीच में देखा जा सकता है।

जेमिनिड मीतियोर वर्षा (Geminids meteor shower) :  पर्सीड मीटियोर वर्षा के बाद इस साल यह की यह दूसरी सबसे अद्भुत उल्का वर्षा है। NASA के अनुसार यह उल्का वर्षा 13 दिसंबर, 2023 से 14 दिसंबर, 2023 के बीच में भारत में देखने को मिलेगी। इसे देखने का सबसे अच्छा समय शाम से सुबह के बीच में होगा क्योंकि इसके बीच में चाँद नही देखेगा। चंद्र ग्रहण के कारण यह नजारा और भी साफ दिखाई देगा। आपको आसमान में रंग–बिरंगे मीटियोर, लगभग 120 मीटियर प्रति घंटे की गति से गिरते नजर आएंगे।

उल्का पिंड क्यूँ गिरते हैं ?

हमारे सौमण्डल में एस्ट्रोइड बेल्ट के अलावा उल्कापिंड हर जगह यूं ही घूमते रहते हैं, और जब तक उन्हें किसी ग्रह या उपग्रह का गुरुत्वाकर्षण बल अपनी और न खींचे ,तब तक उल्का पिंड अंतरिक्ष में यूं ही भटकते रहते हैं। बिना किसी गुरुत्वाकर्षण की वज़ह से वो कभी भी किसी भी ग्रह से टकरा जाते हैं । लेकिन जब कभी वो हमारी पृथ्वी के आस पास या उसके गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में प्रवेश करते हैं, तो सबसे पहले वो पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते हैं । लेकिन उनकी बहुत ज्यादा गति के कारण पृथ्वी की ओज़ोन और अन्य गैसों के घर्षण से उनमें आग उत्पन्न हो जाती है और पृथ्वी की सतह तक आते आते वो बहुत छोटे हो जाते हैं। किसी उल्का पिंड के पृथ्वी पर गिरने की बहुत कम संभावना होती है।

FAQs

उल्का पिंड कैसे बनते है?

NASA के अनुसार लगभग 460 करोड़ साल पहले एस्टेरॉयड का जन्म हुआ था। इनसे बनाने में मुख्य भूमिका बृहस्पति ग्रह ने निभाई थी। हमारे सौर मंडल के इतिहास में जब बृहस्पति ग्रह बना था तब इसकी गुरुत्वाकर्षण शक्ति इतनी थी कि इसके बल से छोटे–मोटे ग्रह और उपग्रह आपस में टकराने लगे और छोटे–छोटे टुकड़ों में बिखर गए। इन्ही टुकड़ों को आज Asteroid Belt कहा जाता है।

उल्का पिंड कितना बड़ा होता है?

ज्यादातर उल्का पिंड वसुमंडल के घर्षण बल से रेत के कण से लेकर हथेली भर जितने बड़े ही होते हैं।

सबसे बड़ा उल्का पिंड कौनसा है?

सबसे बड़ा उल्का पिंड होबा मीटियोराइट है, जिसकी लंबाई 9 फुट और चौड़ाई 8 फुट है। इसका वजन लगभग 60 टन है।

उल्का पिंड किस चीज़ से बनते है?

वैसे तो सामान्य उल्का पिंड पत्थर, धातु कैसे लोहा और अन्य चीज़ से बनते हैं। लेकिन कुछ उल्का पिंड सोने और इसकी जैसे अन्य बहुमूल्य धातुओं से भी बने होते हैं।

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